【3】 हवा का पैग़ाम
एक अन्धेरी रात मैं, सरसरा रही थी हवा
बार-बार आके, कुछ कह रही थी हवा
एक अन्धेरी रात में…………
{1} देखो इन्सानियत से खाली, हो गया भारत देश
धीमे स्वर में मनकी व्यथा, जैसे कह रही थी हवा
तेरी मेरी कर धरती पर, लोग बदलते रहते वेष
ठगी, फरेब से बचने की, सलाह दे रही थी हवा
एक अन्धेरी रात में ………….
{2} ठण्डी मन्द पवन बोली, मैं अपनी धुन मैं चलती हूँ
आलस करने वालों को, जैसे जगा रही थी हवा
कठिन से कठिन विपत्ति में भी, मैं न कभी घबराती हूँ
परिश्रम करने का सन्देश, जैसे दे रही थी हवा
एक अन्धेरी रात में…………
{3} वक्त़ के रूख को देख तेज, धीरे चलना मेरी आदत है
हर मुश्किल से लड़ने को, जैसे कह रही थी हवा
बिना रुके अपने पथ पर, चलना ही मेरी इबादत है
हारे-थके हुओं को, साहस जैसे दे रही थी हवा
एक अन्धेरी रात में………….
{4} कल के भरोसे कभी नहीं मैं, अपना काम छोड़ती हूँ
कल के काम को अभी करो, ये कह रही थी हवा
वक्त़ की बनी कड़ी जंजीरों, को मैं सदा तोड़ती हूँ
वक्त़ के साथ हमें चलने की, प्रेरणा दे रही थी हवा
एक अन्धेरी रात में…………..
सीखः- हमें अपने लक्ष्य पर प्राप्त होने तक अड़िग खड़े रहना चाहिए।
Arise DGRJ { Khaimsingh Saini }
M.A, B.Ed from University of Rajasthan
Mob. 9266034599