हवा,धरती,पानी और आग की सीख
हवा की सीख”
चाहूं मैं सबसे ये कहना हवा की तरह सदा ही बहना।
जीवन की सब उपयोगी चीजें सदा संग में ढोते रहना।
‘खुशबू’ का बिखराव हवा से ‘बदबू’ का ठहराव हवा से।
जितना लाभ है शुद्ध हवा से उतना नहीं विशुद्ध दवा से।
हल्की हवा गगन में छाई बादल संग ऊंची पदवी पाई।
शीतल हवा भूमि निअराई वातावरण की महिमा गाई।
कोई ठोस कहीं से खिसके रोता शिशु कहीं भी सिसके।
हवा उसीकी ओर खिसके अंग को पड़े जरूरत जिसके।
हवा ही प्राणवायु की वाहक इसीलिए सब इसके ग्राहक।
अनल,अनिल के अगणित ग्राहक ये होते हैं ईंधन दाहक।
ये मंद बहें तब दीप जलें ! अरु तेज बहें तब दीप बुझें।
अनिल उष्ण को शीतल कर दे अरु शीतल को उष्णित।
समसामयिकी भाव जगाके जन-जन को कर दे विस्मित।
“धरती की सीख”
सूर्य अगनी पवन धरनी सभी जल को सुखाते हैं।
मगर हैं धन्य वो बादल जो नभ में जल छुपाते हैं।
न सूरज तक पहुंचता जल न अगनी झेल पाती है।
न पवनों को संघनित जल भरी बदरी सुहाती है।
भूमि पर उपलब्ध जल फिर शुद्ध हो पाए तो कैसे ?
इसलिए प्यासे मनुज को धरनि सरबस लुटाती है।
अशुद्धि जो घुलित जल में उसे दिल से लगाती है।
वाष्पन , संघनन करके वो खुद को भी डुबाती है।
यही सब प्रक्रिया करके धरनि सबको दिखाती है।
” पानी की सीख”
ज्ञान कभी नहीं छुप कर बैठा आओ सीख लें पानी से।
रुको न सुगम राह की खातिर बढ़ते चलो आसानी से।
ज्ञान पिपासा रखते हैं ज्ञानी सार्वभौम विलायक पानी।
तीन अवस्थाएं पानी की कल कल करके बहता पानी।
धीरज धारण करना सीखो बढ़ते ताप उबलना सीखो।
जीरो डिग्री सेल्सियस पर छलनी में भी रुकता पानी।
कंद, मूल, फल से पाया हो या गागर से पाया पानी।
नदी तड़ाग कूप में होकर फिर सागर में जाता पानी।
जहां जरूरी होता पानी हवा के साथ पहुंचता पानी।
पानी से तन को दूर रखा तो मन में हुई बहुत हैरानी।
तन से दूर करोगे पानी तो जीवन की खत्म कहानी।
“आग की सीख”
🔥🔥🔥🔥🔥🔥
कागज को ज्वाला पर रखो ! कागज जलकर होता राख।
यदि कागज में पानी भर दो बढ़ जाती कागज की साख।।
अब कागज को जब देते ऊष्मा तब पानी बन जाता भाप।
अरु उड़कर भाप बनाती बादल जो बनता बूंदों का बाप।।
अब बूंदें फिर से जल बन करके सांचे मीत सी छोड़ें छाप।
अवस्था परिवर्तन भी होता स्वयं में सम्मानित भी ताप।।
आओ ! समझें अरू समझाएं ज्वलन ताप का मर्म बताएं।