हवाओं को गुनगुनाने दे –
आज फिर से कोई नया गीत लिखकर,
स्वछंद, उन्मुक्त हो मन खिलखिलाकर मुस्कुराने दे।
छेड़ तान इस अंदाज में, नदियां साज सजाकर कहें,
कि तू लय भर जीवन में, और हवाओं को गुनगुनाने दे।
तू अपने गीत में सुख दुःख की बारहखड़ी को जोड़ दे।
जीवन की वर्णमाला को अहसास की स्याही जोड़ दे।
सिखाने होंगे निराले स्वर औे व्यंजन जो मस्त हो, हवाओं को गुनगुनाने दे।
आज फिर से रंगीन पतंग की तरह सजा ,
जी भर शिक्षा के वितान तले मदमस्त हो यूं ही उड़ाने दे।
पेंच लड़ाते लड़ाते मेरी उस पतंग की डोर अचानक कट जाए।
ए काश यह पतंग रेखा कोई गरीब ही लूट लेे जाए।
और सीखकर नित नए आयाम खुश हो इल्म की पतंग आकाश में लहराए।
तब वह कहे गर्व से , वन्दे मातरम् और हवाओं को गुनगुनाने दे।