हवस
****** हवस*******
वश में नहीं है जिसके यारों वो बने हवसाधिकारी
प्यार नहीं है, राग नहीं है वो बने कुकर्मी धारी
विद्या ज्ञान विवेक तो पता नहीं कहाँ चला गया
बड़े बड़े ज्ञानी महाज्ञानी उसी में नीत लगा रहा
कहाँ जाएगी मानवता की, सीख जो देते हैं
बाल बनी कन्या ही को, हवसी हवस बनाते हैं
हाथ धरे तकते फिर देखें, आंख मूंद मर जाते हैं बंदूकों की नोक पर ही ,मानवता को नोचते है
शब्द ज्ञान का ऐसा आडम्बर, 36 शहंशाह बनते हैं फिर वो मानवता के पुंज, नोच नोच के खाते हैं
आज पिता की पुत्री ही , उसकी हवस शिकार है
किस पर करें यकीन,उत्पा के प्यास बुझाई है
सभ्यता और संस्कार तो चरम बिंदु पर आ गिरे हैं मानव हितेषी सोच देकर हैवानियत पर आ रहे हैं बुद्धि प्रचंड कमनीय ज्वाला मन में भड़क रही है
कब किस पर वो टूट पड़े प्रचंड बुद्धि की धारा है
आंखें नम होती है क्यों, सबको शिखरो पै जाना है मानवता को मारकर हाँ सबको नाम कमाना है
सच कहता हूं मैं तो यारो ,दुनिया से अब धाप गया
4 साल की बच्ची को ही खूनो से लथपथ कर गया
सच है यारों मैंने जो देखा , वही मैं लिखता हूं
सीख जो देने वाला है वो सबसे बड़ा दल्ला है
योनी ही शिकार बनी है वो ही उसका पिल्ला है
हैवान की हैवानियत ही ,कुकर्मी हवस का हल्ला है
************लेखक /कवि**********
********प्रेम दास वसु सुरेखा**********