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20 Jun 2022 · 1 min read

हवस में फंसी नस्ल

**** हवस में फंसी नस्ल है *****
***************************

सहरा ए हवस में फंसी नस्ल है,
चाहत की फसल में धंसी अक्ल है।

बाजारी चकाचक गुमराही भरी है,
फैशन की चौंध में बिगड़ी शक्ल है।

दुनिया भी फ़ज़ीहत करती रहे अब,
हरदम तो यहाँ भी दिखती दखल है।

कोई भी नही बच पाया जहां में,
काया वासना की मिलती फ़ज़ल है।

मनसीरत नहीं समझे बात सारी,
अपनी भी इख्तियारी शैली सरल है।
****************************
सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
1 Like · 81 Views
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