हवस में पड़ा एक व्यभिचारी।
हवस में पड़ा एक व्यभिचारी।
धन की चाहत में लगा एक व्यापारी।
जुए खेलने वाला एक जुआरी।
किसी खेल को खेलने वाला खिलाड़ी।
ये जब उसे अपना नशा और लत बना लेता है।
की वो शीर्ष ऊंचाइयों पर पहुंचने के बाद।
वो लोगो को यही समझाता है ।
की जीवन सहजता और सरलता खुद को पहचानने में है।
जिसने खुद की प्रतिभा को नही पहचाना ।
वो जीवन में महज गरीबी और लाचारी का रोना रोते रह जाता है।
RJ Anand Prajapati