चोर दरबार से नहीं निकला
हल ये सरकार से नहीं निकला
चोर दरबार से नहीं निकला
खून से तर बतर इबारत थी
ज़हन अख़बार से नहीं निकला
उम्र भर लफ्ज़ इक निदामत का
क्यों गुनहगार से नही निकला
शहर वीरान हो गया लेकिन
शाह दरबार से नहीं निकला
मेरी आँखों में खून उतर आया
काम जब प्यार से नहीं निकला
काश उसकी नजर पड़े उन पर
कोई रफ्तार से नहीं निकला
खेल हावी हुआ है बच्चों पर
जहन इतवार से नहीं निकला
हर घड़ी कोई साथ चलता है
में कि घर बार से नहीं निकला
अपनी औकात जान ली हम ने
दोस्त जब कार से नहीं निकला
दर्द ‘अरशद’ सुई ने दूर किया
खार तलवार से नहीं निकला