सूखा पत्ता
शीर्षक- सूखा पत्ता
हरा था तब तक
डाली से जुड़ा था
सूख कर झड़ गया
डाली से बिछड़ गया।
गिरा मखमली घास पर
ओस ने पिलाया पानी
फिर भी मैं खुश था
जीवन अभी शेष था।
आया झोंका हवा का
उड़ा ले गया मुझे
अपनो से बहुत दूर
उस नदिया के पार।
कूड़े कचरे का ढेर था
चारों तरफ अंधेर था
लग रहा था मुझे डर
मित्र पुराने मिल गए मगर
हालत सभी की थी एक सी
बेघर हो भटक रहे थे
भूख प्यास से तड़प रहे थे।
कोस रहे थे अंतिम
अवस्था को
जीवन की व्यवस्था को
साथ दिया न जवान पत्तों ने
थे हम उनके लिए एक बोझ
फेंक दिया दूर अपने घर से
कुछ समय पड़ा रहा वहीं पर
मांस गल गया सूख कर
अस्थि मात्र रह गईं।
काट रहा दुख के दिन
आ गई दया फिर हवा को
उड़ा कर डाल दिया
नदिया के जल में
चला साथ कुछ
दूर तक जल के
समाप्त हो गया फिर गल के
अचानक दिखाई दिया
एक दिन
एक हरा पत्ता उस पेड़ पर लगा था
सूखे को ठेल कर गिराने की कोशिश कर रहा था।
डॉ.निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया, असम