हर सुबह दीया बुझाता हूँ
हर सुबह दीया बुझाता हूँ
शाम होते फिर जलाता हूँ।1
टूटते रहते यहाँ सपने
आस मैं फिर से लगाता हूँ।2
कौन कहता है खता अपनी
क्यूँ भला खुद की बताता हूँ? 3
नाचते जो, जीत जाते हैं
मैं नचाते मुस्कुराता हूँ।4
लाज की परवा किसे अब है?
बेवजह मैं ही लजाता हूँ।5
श्वेद-कण, बन ओस की बूँदें,
जी रहा, पावक नहाता हूँ।6
उर्वरे!भागे अँधेरा भी,
इसलिये तिनके जलाता हूँ।7
@मनन