हर सुबह जन्म लेकर,रात को खत्म हो जाती हूं
हर सुबह जन्म लेकर,रात को खत्म हो जाती हूं
जैसे पुरानी किताब पर नया, मुखपृष्ठ अनोखा बन जाती हूं।
दीवार समझ कुछ लोग गिराने की कोशिश करतें हैं
पर मैं दो घरों को जोड़ती दीवार में,झरोखा बन जाती हूं।
दलदल की गर्तों में गिरकर, फिर उठना सिखा है मैंने,
बता कर अपने मयकदो के लिए,नया हौसला बन हूं।
एक जिंदगी,एक पल में मौत, सब खत्म कर देती है,
मुरझाए रिश्तों का फिर से एक,नया सवेरा बन जाती हूं।
पट खोलकर दिल का,हर चीज स्वीकार करती हूं,
खुशियों के लिए धरती, गमों के लिए आसमां बन जाती हूं