हर सावन हरा नहीं होता
हर सावन हरा नहीं होता ।
हर सोना खरा नहीं होता ।।
पत्थर दिल वाली आंखों में ।
अश्रु जल भरा नहीं होता ।।
सागर में प्यासी रहे सीप ,
बस स्वाति बूँद की चाह लिये ।
चातक व्रत लेकर सहे तृषा ,
बिन प्राणों की परवाह किये ।।
विषम परिस्थिति में मन का ।
संकल्प भी डरा नहीं होता ।।
पत्थर दिल वाली आंखों में ।
अश्रु जल भरा नहीं होता ।।
फूलों का खिलना केवल ,
सौंदर्य बोध का रूप नहीं ।
अस्तित्व नहीं है छाया का ,
जब तक खिलती है धूप नहीं ।।
नव सृजन न हो पाता उर्जित ।
सपना जब मरा नहीं होता ।।
पत्थर दिल वाली आंखों में ।
अश्रु जल भरा नहीं होता ।।
✍️ सतीश शर्मा ।