हर सफर में मुस्कुराना चाहिए
फ़ासलें दिल के मिटाना चाहिए
फूल होठों पर खिलाना चाहिए
हर दुआ होगी तेरी पूरी मगर
सर इबादत में झुकाना चाहिए
ग़म मिले हमको या मिल जाये ख़ुशी
हर सफर में मुस्कुराना चाहिए
क्या हुआ त्यौहार कोई है नहीं
घर पड़ोसी को बुलाना चाहिए
शर्म से सर ना झुके जब दोस्त हों
दुश्मनी को यूँ निभाना चाहिए
बेटियां भी घर की होती शान हैं
बेटियों को भी पढ़ाना चाहिए
कुछ यहाँ पर देख नामुमकिन नहीं
आग पानी में लगाना चाहिए
गर दिलों में नफ़रतें ही हैं भरी
इक नई दुनिया बसाना चाहिए
थी नहीं चिंता न कोई थी फ़िकर
फिर अदिति बचपन सजाना चाहिए
लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’