‘ हर शाम दोस्तों के नाम ‘
शाम सुनहरी हो या एक सिंदूरी शाम हो
अगर दोस्त ना हों तो हर शाम आम हो ,
चाहे जितनी भी लड़ाई हो बातों से कुटाई हो
हर वो शाम बेरंग है जब हमारी जुदाई हो ,
शाम में रंग तो हम अपने मिजाज से भरते हैं
शाम रंगीन होती है जब मिल के दुख हरते हैं ,
ना दिन की चिंता ना रात की कोई फिकर है
बस शाम रंगीन हो यही चाहता जिगर है ,
दिन रात कट जाते हैं शाम सब याद आते हो
एक सिंदूरी शाम ख़ास तुम ही तो बनाते हो ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 10/12/2020 )