हर शय¹ की अहमियत होती है अपनी-अपनी जगह
हर शय¹ की अहमियत होती है अपनी-अपनी जगह
कोई नही ले सकता,किसी के बदले किसी की जगह
सारे समरसता क्षण भर में , बिगड़़ते _नज़र आएंगे,
रखकर देखो तो ज़रा , किसी को किसी की जगह|
उनकी मर्ज़ी के बग़ैर जहाँ में ,कुछ भी नहीं होता है,
पत्ता भी नही हिलता , इस जहाँ में खाली बे_वजह|
फ़र्क कुछ तो रह ही जाएंगे, असली और नकली में,
हू_ ब_ हू नही हो सकता , कोई भी किसी की तरह|
जो जैसा है उसे आत्मसात करना सीखो ,जिंदगी में,
उड़ते-उड़ते कहीं छूट न जाए ,पैरों से जमी की सतह|
उलझनों को सुलझाते चलो,हयात² सरल होते जाएंगे,
बनाये जाते हो क्यूँ सरेराह, दुशवारियों³ की -गिरह⁴?
_ सुलेखा.