हर शख्स उदास है
हर शख्स तन्हा,हर शख्स उदास है।
सागर को लगी ,जन्मों की प्यास है।
ग़म इस तरह बैठे हैं मुझे घेर कर
खुशियां बैठी है मानो मुंह फेर कर।
हिस्से में अपने ,बस आई तन्हाईयां
रूठे तुम तो रूठी है सब रानाईया।
सर्द लहजों ने बढ़ा दी सबमें दूरियां
कुछ नसीबों ने बढ़ा दी है मजबूरियां।
तन्हाई में बात करने को अब कोई नहीं आंख नहीं कोई जो चुपके से रोई नहीं।
सुरिंदर कौर