हर वर्ष जलाते हो हर वर्ष वो बचता है।
हर वर्ष जलाते हो हर वर्ष वो बचता है।
फिर बैठ सबके अंदर षड्यंत्र वो रचता है।।
हर दिन किसी सीता का अपहरण हो जाता है।
हम देख के रोते हैं वो देख कर हँसता है।।
ये सिलसिला सदियों से चलता है और चलेगा।
जब तक छुपा है दिल में तब तक नहीं जलेगा।।
जिस दिन तुम अपने अंदर के रावण को मार दोगे ।
उस दिन हो शुभ दशहरा रावण भी ना बचेगा।।
“कश्यप”