हर लम्हा
कुण्डलिया
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हर लम्हा है कीमती, जानें इसे विशेष।
पल भर में होता प्रलय, मिट जाते अवशेष।
मिट जाते अवशेष, निमिष में सब घट जाता।
मानव होकर मौन, देखता ही रह जाता।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, व्यक्ति हो जाता तन्हा।
होते जब उत्पात, पड़े भारी हर लम्हा।
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चौराहे के बीच में, खड़ा हुआ इन्सान।
समझ यही पाता नहीं, करें कहां प्रस्थान।
करें कहां प्रस्थान, दिशा का भान नहीं है।
मार्गदर्शिका चिन्ह, बिन समाधान नहीं है।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, कष्ट होते अनचाहे।
शीघ्र मिलेगा साथ, प्रतीक्षा पर चौराहे।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य