हर लड़की अपने जीवन में हर भाव समर्पित करती हैं
हर लड़की अपने जीवन मे हर भाव समर्पित करती है !
क्यूँ त्याग तपस्या मर्यादा अपने जीवन मे चुनती है !
देख चुकी सती का जीवन फिर भी वही कहानी बुनती है !
अपने पति मे शिवशंकर खुद में पार्वती का प्रतिरूप समझती है !
राधा जैसी बनकर भी देखा श्याम की धुन मे बजकर कभी बजी नहीं !
मीरा के जैसे विष का प्याला पीकर देखा कान्हा उसको मिला नहीं !
राम के जैसे वन-वन भटकी सही आंकलन हुआ नहीं !
जीवन की परिभाषाओं में खुद तो कभी कुछ चुना नहीं !
खुद के निर्णय के आधारों पर अपना जीवन जिया नहीं !
क्यूँ आज भी उसके जीवन से मन का अंधियारा ढला नहीं ?
देख रही आचरण मानव का फिर भी शीश उसका झुका नहीं !
आज भी घुट घुट कर सारे आँसू चुपचाप ही पीती है !
होंठों पर मुस्कान सजाए सारे अंगारे सहती है !
आज खड़ा ये कठिन समाज उसके आँसू पर हँसता है !
झूठे प्यार दिखावे के नाटक से आज भी उसको छलता है !
समझ के सारी चतुराई खुद मे ताकत भरती है !
जानती है समाज की नीव वही है,
बिखर न जाए आज घरौंदा सोच सोच कर डरती है !
खुद होकर बेमोल दुनिया को अनमोल समझती है !
बिन मांगे वो प्रेम किसी से सबमें प्रेम रस संचित करती है !
भाव नहीं मन में कोई फिर भी खुद को संतुष्ट समझती है
हर लड़की अपने जीवन मे हर भाव समर्पित करती है !!