हर रोज रावण आ रहा
हर रोज रावण आ रहा (ग़ज़ल)
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हर रोज सामने रावण आ रहा,
है ख़ौफ़ ही सदा मन में छा रहा।
उस रोज था जलाया लंकेश को,
फिर से कहाँ दशानन है आ रहा।
छूआ नहीं कभी आँचल नार का,
है कौन जो जुल्म जालिम ढा रहा।
तोड़ी नहीं मर्यादा उसने भी कभी,
है लूटता अस्मत अब वो जा रहा।
की लाख कोशिशें मनसीरत यहाँ,
है राम कौन रावण सा भा रहा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)