हर रोज में पढ़ता हूं
हर दिन मैं पढ़ता हूं
हर दिन मैं लिखता हूं
कब मिलेगी नौकरी
यही मैं सोचता हूं
रोज की परेशानियों से
हर दिन की थकानी से
यही तो मैं लिखता हूं
हर रोज मैं पढ़ता हूं
हर रोज मैं पढ़ता हूं
आंखों में आशा लिए
दिल में भरोसा लिए
घर की उम्मीदों पर
खड़ा होने की कोशिश में करता हूं
हर रोज मैं पढ़ता हूं
हर रोज मैं पढ़ता हू
देखता हूं उम्मीद से
सोचता हूं उम्मीद से
अबकी बार मैं हो जाऊंगा सफल
यही मैं सोचता हूं
हर रोज मैं पढ़ता हूं
हर रोज मैं पढ़ता हूं
हर बार मैं सोचता हूं
अगली पर्व घर में होगी
घर में खुशहाली होगी
नौकरी की उम्मीद लिए
खूब मैं पढ़ता हूं
हर रोज मैं पढ़ता हूं
हर रोज मैं पढ़ता हूं
पढ़ने में उम्र बीत गई
मालूम नहीं चला
कब मै शादी के योग्य हो गया
मालूम नहीं चला
अब की साल मिलेगी नौकरी
यही मैं सोचता हूं
खूब मैं पढ़ता हूं
हर रोज मैं पढ़ता हूं
हर रोज मैं पढता हूं
सुशील चौहान
फारबिसगंज अररिया बिहार