हर पति परमेश्वर नही होता
करम से हर जन जाना जाये
छोटा बड़ा सबको दिखलाये
एतबार उसका यूँ न खोता
हर पति परमेश्वर नही होता
किसी पथ पर न अबला रोती
डरी,सहमी न घायल होती
शरीर से रक्त न बहा होता
हर पति परमेश्वर नही होता
दहेज,लालच की बलि चढ़ जाये
सताई या फिर मारी जाये
दुख से आँचल भरा न होता
हर पति परमेश्वर नही होता
अपनों से वो धोखा खाये
बिलखकर भीतर रोती जाये
पीड़ा हाय ये निसदिन कैसी
नियति उसकी परिंदे जैसी
घायल परिंदे सी फड़फड़ाए
लहूलुहान हो सब सहती जाए
धैर्य सा यूँ ही नही खोता
हर पति परमेश्वर नही होता
परमेश्वर अब भले न बनना
मानव ही बनकर सदा रहना
दया,प्रेम उस पर दिखलाना
रमणी है कहीं भूल न जाना
सदगुणों का फिर मान करना
स्नेह के अब सुर्ख़ रंग भरना
परमेश्वर वही कहलाया
दया,प्रेम, जिसने दिखलाया।
✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक