*हर देह ही स्वर्ग सिधार रही(घनाक्षरी)*
हर देह ही स्वर्ग सिधार रही(घनाक्षरी)
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कब वृक्ष लदे हैं सदा फल से
कब बाग में नित्य बहार रही
कब चंद्र है रोज दिखा नभ में
कब सूर्य में एक-सी धार रही
तन क्षीण हुआ न रहा यौवन
काया होना अति भार रही
शमशान ने बात बताई हमें
हर देह ही स्वर्ग सिधार रही
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रचयिता रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451