हर तरफ नूर
गिरहबन्द मुक्तक
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हर तरफ नूर था चाँदनी रात थी।
जब मेरी उनसे पहली मुलाक़ात थी।।
एक बादल खुशी का चला झूमकर।
“ज़िन्दगी में मुहब्बत की बरसात थी”।।
✍️ शैलेन्द्र ‘असीम’
गिरहबन्द मुक्तक
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हर तरफ नूर था चाँदनी रात थी।
जब मेरी उनसे पहली मुलाक़ात थी।।
एक बादल खुशी का चला झूमकर।
“ज़िन्दगी में मुहब्बत की बरसात थी”।।
✍️ शैलेन्द्र ‘असीम’