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23 Sep 2024 · 1 min read

हर ज़िल्लत को सहकर हम..!

हर ज़िल्लत को सहकर हम,
काट रहे हैं हर मौसम।

सौदागर थे खुशियों के,
लेकिन हैं गठरी में ग़म।

यूँ आंखों में क़तरे हैं,
ज्यों फूलों पर हो शबनम।

जख़्म गए जब सूख मेरे,
तब लाये हो तुम मरहम..?

दर्द बना हमदर्द मेरा,
जब तब आँखें होती नम।

कश्ती डूबी है मेरी,
जब दरिया में पानी कम।

ज़ीस्त पहेली है शायद,
कैसे हो हल ये सरगम।

पंकज शर्मा “परिन्दा”

Language: Hindi
42 Views

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