हर गली में ये मयकदा क्यों है
-ग़ज़ल-
दर्द में आज मुब्तिला क्यों है
आइना है तो ग़मज़दा क्यों है
ख़ूबसूरत मिली उसे दुल्हन
पर ये ख़ुश इतना गुलगुला क्यों है
अपनी बेबाक़ी पे था जो क़ायम
झूठ का रहनुमा हुआ क्यों है
गर है पीना ख़िलाफ़-ए-मज़हब तो
हर गली में ये मयकदा क्यों है
जो किसी को न दे सके साया
पेड़ इतना वो फिर बड़ा क्यों है
शहर जाकर वो ए.सी. ले आया
अब न पूछो शजर कटा क्यों है
एक दिन तय है आयेगी प्रीतम
इस क़दर मौत से डरा क्यों है
प्रीतम श्रावस्तवी