हर गम
जिंदगी मे सभी को हंसता हंसाता रहा हूॅ मै
हर गम को हर दम अपने छुपाता रहा हूॅ मै
ओर भी गम है जमाने मे मुहब्बत के सिवा
सभी को दोस्तो ये बात समझाता रहा हूॅ मै
इस वक्त को या खुद को इल्जाम क्या दूँ मै
जिम्मेदारीयों मे चाहत को दबाता रहा हूॅ मै
धूप बारिश सर्दी-गरमी बेपरवाह गुजारे है
इस दिल को हर वक्त पत्थर बनाता रहा हूॅ मै
गमो का अपने जो हिसाब करने बैठ गया मै
उसका ओर अपनो का नाम मिटाता रहा हूॅ मै
Mohan Bamniya