Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Apr 2023 · 1 min read

हर खुशी को नजर लग गई है।

बात तो थी झूठी फिर भी असर कर गई है।
जिन्दगी की हर खुशी को नजर लग गई है।।1।।

झूठ ने हर सच्चाई को कब से दबा रखा है।
घर की दीवारें लगे जैसे कफस बन गई है।।2।।

बारिश की बूंदो ने जर्रे जर्रे को भिगोया है।
गुलशन की हर कली खुद में महक गई है।।3।।

वादा करके भी तू क्यूं लौटकर ना आया है।
तेरे दीदार को ये प्यासी आंखे तरस गई है।।4।।

बहारो के बदलने से हर परिंदा उड़ चला है।
खिजाके मौसम में जां हर शजर की गई है।।5।।

तेरे दूर जानें से जिंदगी मुझसे खफा हुई है।
जिंदा तो है पर रूह मेरी कबकी मर गई है।।6।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ

470 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Taj Mohammad
View all
Loading...