हर कदम
गीतिका
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हर कदम साथ में तुम मिलाते रहो,
स्नेह की धुन मधुर गुनगुनाते रहो।
छोड़ दो हर निराशा खिले जिन्दगी,
सुप्त प्रिय भावना फिर जगाते रहो।
फिर उसी राह पर हम मिलेंगे कहीं,
भाग्य को भी कभी आजमाते रहो।
जो तराने कभी कर्णप्रिय थे लगे,
है गुजारिश वही फिर सुनाते रहो।
धुंध नीरस घिरी अब मिटा दीजिए,
रूप की छवि मनोहर दिखाते रहो।
ठोकरें भी लगें किंतु रुकना नहीं,
साथ में कुछ मजे भी उठाते रहो।
जब हमें आपसे कुछ शिकायत नहीं,
जब कभी मन करे पास आते रहो।
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भूलकर दूरियां मन मिलाते रहो।
स्नेह की भावनाएं जगाते रहो।
राह में बढ़ चलें साथ खुशियां लिए।
स्वप्न सुन्दर नयन में सजाते रहो।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १२/१०/२०२४