–हर कदम पर जंग–
न था पता कभी किसी को
ऐसा दिन भी सामने आएगा
आदमी आदमी से दर कर
अपने घर में छुप जाएगा
बाहर निकलेगा तो
परेशानी में डूब जाएगा
बार बार हाथ धोता हुआ
परेशांन जीवन बिताएगा
खुद को संभालने के लिए
नितं नए नियम बनाएगा
हसेगा उप्पर के दिल से
भीतर भीतर आंसू बहायेगा
गले मिलना, हाथ मिलाना
सब का सब खतम हो जाएगा
खाने का मन होगा फास्ट फ़ूड तो
घर में बना बना के खायेगा
कदम कदम पर जंग निराली
न जाने कब तक नाच नचायेगा
कोरोना के चक्कर में
न जाने क्या क्या भेंट चढ़ाएगा
अजीत कुमार तलवार
मेरठ