हर एक चेहरा निहारता
हर एक चेहरा निहारता,
कोई एक चेहरा तलाशत,
दस्तक देता था जो कोई,
ख्वाबों की दुनिया में भी,
बजते थे तल मृदंग,
एक एक धड़कन में,
अनुभिज्ञ हर पल खोजता,
पुकारता ,सिसकता और
आंखों को कोर नम कर देता,
कांच के सामने निहारता, पूछता !
हम न बन सके किसकी ?
ना बना सके किसी को ?
कोई जवाब तो मिल जाता,
लिखा था एक अफ़साना,
एक एक तारों को गुथ कर,
हर एक चेहरा निहारता,
कोई एक चेहरा तलाशत।
गौतम साव