कली कचनार सुनर, लागे लु बबुनी
नहीं टिकाऊ यहाँ है कुछ भी...
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
कब हमको ये मालूम है,कब तुमको ये अंदाज़ा है ।
ज्यामिति में बहुत से कोण पढ़ाए गए,
कभी खामोशियां.. कभी मायूसिया..
अष्टांग योग
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
मैं जब जब भी प्यार से,लेता उन्हें निहार
राम की रीत निभालो तो फिर दिवाली है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
दुनिया में इतना गम क्यों है ?
प्रदीप : श्री दिवाकर राही का हिंदी साप्ताहिक (26-1-1955 से
जब रात बहुत होती है, तन्हाई में हम रोते हैं ,