हर इक सैलाब से खुद को बचाकर
हर इक सैलाब से खुद को
बचाकर के चले आए ।
अहम दिल के तो दरिया में
बहा करके चले आए ।।
जहां पर आचमन करने से
दिल के दाग धुलते हैं ।
उसी पावन त्रिवेणी में
नहा कर के चले आए ।।
कभी सर्दी कभी गर्मी
कभी दोपहर से गुजरे ।
नहीं मालूम है हमको
कब किस पहर से गुजरे ।।
अपने जीवन के रंजो गम
दबाकर अपने सीने में ।
लुटाया प्यार ही हमने
जहां जिस शहर से गुजरे।।
©अभिषेक पाण्डेय अभि