हरि चंदन बन जाये मिट्टी
खेतों में अन्न उगाये मिट्टी
हरि चंदन -सी बन जाये मिट्टी
ये नाच नचाये सारा जीवन
यूँ खेल तिलिस्म रचाये मिट्टी
अब पावन रूप नया गढ़ने को
नित ही कुम्हार तपाये मिट्टी
बेबस दर-दर की ठोकर खाये
माथे पर धूल उड़ाये मिट्टी
हर शय करता आघात यहाँ पर
भाई-भाई लड़वाये मिट्टी
अब तान रही शमशीर सियासत
लालच के गर्त डुबोये मिट्टी
जो दूर बसे गाँवों में जाकर
अपनों के संग मिलाये मिट्टी
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
11/10/2022
वाराणसी ,©®