हरियाली और खुशहाली
हरीभरी धरा
लगती है
सब को अच्छी
कहती है ये
जंगलों की
कहानी सच्ची
वन्यजीवों के हैं
यहाँ के रहवासी
पंछियों के
उड़ते समूह
यहाँ के वासी
बारिश के
आधार है ये
जड़ी बूटियों से
भरे संसार है ये
मानव बनता
जा रहा स्वार्थ में अंधा
हरियाली से
कर रहा धंधा
कांक्रीट में बदल रहा
हरियाली वो
फिर कहाँ पाएगा
खुशहाली वो
अब भी चेत जाओ
ओ मानव
पर्यावरण के
मत बनों तुम दानव
जब रहेंगे प्रसन्न
वृक्ष जंगल हमारे
देंगे आशीर्वाद
वो सब सारे
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल