हरिगीतिका
पुलक परिन्दे नभ जाय
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मीठी तान सुना दे मितवा , जे मन मगन हो जाय ,
मन के मैल मिटाए मानवां, मन उजयार हो जाय,
मन भेद से महल है उजड़ा, मन कभी आपा खोय,
बिखरे मोती मोल न कूता, माल गुथी नाहि जाय ।
ईद-दीवाली सदा मनाए , प्रीत की रीत निभाय ,
गृह आंगना बिखरे खुशियाँ , पुलक परिन्दे नभ जाय ,
सृजन नवयुग का कर बन्दे , नव चेतन चित्र बनाय ,
टूटे दंभ दानव मानव का , कटुता घानी पिसाय ।
प्रीतम सम प्रेम पनपे अंतर , शीतल समीर बौराय,
पत्ते हिल-मिले झूला झूले , डारिया झुक-झुक जाय ,
निर्मल नीर बहे सब नदिया, पनघट नेह भर जाय,
दो पल जीना काम है अनंत, सोचत जीवन पल जाय ।
हर पल हो श्रम की पूजा , पाखंड धरा रह जाय ,
उद्यम फूले गाँव-गली में , देश तजे सुत न जाय ,
कलियाँ कलप किलके प्रतिपल, मधुरस कंठ भर जाय ,
खेत भरें हो हरियाली में , वसुधा देख हरषाय ।
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शेख जाफर खान