हरिगीतिका छंद
हरिगीतिका छंद – यह एक मात्रिक छंद है।इसमें 28 मात्राएँ होती हैं।16 और 12 पर यति का प्रयोग होता है। इसकी 5 वीं ,12 वीं,19 वीं, और 26 वीं मात्रा अनिवार्यतः लघु होती है।इसके चरणांत में रगण (ऽ।ऽ) का प्रयोग कर्णप्रिय होता है।फारसी की बह्र – मुतफ़ायलुन, मुतफ़ायलुन, मुतफ़ायलुन, मुतफ़ायलुन या मुस्तफ़अलन, मुस्तफ़अलन,मुस्तफ़अलन, मुस्तफ़अलन- इस छंद से मिलती है।
बह्र- ऽऽ।ऽ, ऽऽ।ऽ, ऽऽ।ऽ, ऽऽ।ऽ
मुक्तक-
पगडंडियाँ वापस बुलातीं आज फिर से गाँव की।
आओ चले चिंता नहीं ,है बंधु कोई ठाँव की।
रहते सभी हैं साथ में , अपनत्व की गंगा बहे,
सब लोग कहते कष्ट को,जूती यहाँ पर पाँव की।।1
भूखा नहीं प्यासा नहीं कोई हमारे गाँव में।
दिल की अमीरी है भले जूती नहीं है पाँव में।
पक्के नहीं हैं घर डगर सदियों पुरानी चल रही,
लेते मज़ा सब ज़िंदगी का बैठ बरगद छाँव में।।2
डाॅ बिपिन पाण्डेय
गीतिका-
लिखता रहूँ नित काव्य नूतन प्यार दे माँ शारदे।
मम लेखनी को भाव का उपहार दे माँ शारदे।।1
भावुक नहीं संवेदना से संबंध भी अपना नहीं,
पर काव्य लेखन का मुझे व्यवहार दे माँ शारदे।।2
कंपित रहें सुन शब्द के हर नाद को पापी सदा,
वीणा सरिस ही कंठ को ,झंकार दे माँ शारदे।।3
ममता दया करुणा सने जिनके हृदय में भाव हैं,
उनको कृपा कर प्रीति का संसार दे माँ शारदे।।4
सब युग्म हों रसमय अलंकृत भाव से परिपूर्ण हों,
हर शब्द को सत्कृत्य सा विस्तार दे माँ शारदे।।5
आवाज़ दुखियों की बने निस्वार्थ होकर लेखनी,
प्रेरक सुकोमल ज्ञानमय उद्गार दे माँ शारदे।।6
हंसासना विद्या प्रदायिनि श्वेत पट तन धारिणी,
निर्वाण कामी दास को जग सार दो माँ शारदे।।7
डाॅ बिपिन पाण्डेय