हरसिंगार झर गए
हरसिंगार झर गए
स्वप्न सभी इन आँखों के
विस्मृत सा कर गए
समय देख मेरा भारी
सब ही मुकर गए
जो भी गुजरे पीड़ाओं से
जीवन से तर गए
बहुत बार अपने तन की हीं
छाया से डर गए
नारी को भी मानव समझा
स्वर्ग वही नर गए
हरसिंगार झर गए
स्वप्न सभी इन आँखों के
विस्मृत सा कर गए
समय देख मेरा भारी
सब ही मुकर गए
जो भी गुजरे पीड़ाओं से
जीवन से तर गए
बहुत बार अपने तन की हीं
छाया से डर गए
नारी को भी मानव समझा
स्वर्ग वही नर गए