हरषाती धूप : जितेंद्रकमलआनंद ( पोस्ट १६१)
गीत: हरषाती धूप
जाड़े के मौसम में हरषाती धूप
खेतों में , रेतों में, हरषाती धूप
भली लगी सोने- सी ,
पीली वह सरसों — सी मदमाती धूप ।।
मंदिरके तरुवर पर
गोधन पर, पोखर पर , ढोलक पर धूप ।
भली लगी थापों पर ,
मनमोहक छंदों को सुनवाती धूप ।।
टीलों के ढालों को ,
बबागों के फूलों को , भौरों को धूप ,
भली लगी सर्पीली,
पथिकों को छलती- सी बल खाती धूप ।।
पेड़ों की पॉतों में —
और चरागाहों में झिलमिल- सी धूप ,
भली लगी कलरव में ,
निर्झर की झरझर कर बतियाती धूप।।
—- जितेंद्रकमलआनंद| दिनॉक :१६-११-१६
सॉई विहार कालोनी , रामपुर ( उ प्र )