हरजाई खुशी
चुपके से नजरों से बचके मेरी चली जाती है कहां,
मैं ढूंढा करती हूं उसे हमेशा जाने कहां कहां ।
यह लुका छिपी का खेल कब तक चलेगा बता दे,
मेरे इस सवाल का जवाब वोह देती हैं कहां !
काश कोई तो जादूगर या फरिश्ता इसे ढूंढ ले इसे ,
और लाकर मेरे दामन में डाल दे यह छुपी हो जहां।
पैगाम दे दे कोई इस खुशी को मेरे दिल का,
ज़रा से अरमानों के लिए क्यों भटकाती है यहां वहां।
बस कुछ ही तो ख्वाईशें है पूरी करने को ,कर भी दे,
और कोई तमन्नाएं हमारी अब बची भी कहां ।
जिंदगी की शाम होने जा रही है कुछ तो रहम कर ,
उम्मीदें लगाकर इंतजार करूं इतनी फुर्सत है कहां?
मेरी तो फरियाद वोह सुनती नहीं तकदीर की तरह,
कैसे मनाऊं इन दोनों को ,जिद्दी है बड़ी यह हां !!
यह हरजाई खुशी तकदीर की कनीज़ जो ठहरी,
जब उसका इशारा ना होगा यह मेहरबान होगी कहां?
आखिर ” अनु” किस्से करे फरियाद,किसे सदायें दे,
तकदीर के मारे इंसान की खुदा भी सुनता है कहां ?