हम
हम
बहती मैं भी…
लिए उमंगे…
नित संग लाती…
नव अभिलाषा….
नव सृजन…
नव तरंग संग…
नित भरती जीवन मे रंग…
होते फलित स्वप्न…
सब अपने…
न मैं-मैं होती…
न तुम केवल तुम…
एक दूजे के पूरक बन हम…
हम होते हम…
हम की हम…
होते परिभाषा….! ! !
सुधा भारद्वाज’निराकृति’
विकासनगर ( उ०ख०)