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20 Apr 2022 · 2 min read

*हम हैं मध्यमवर्ग (लॉकडाउन कहानी)*

हम हैं मध्यमवर्ग (कहानी)
———————————————–
“क्या बात है मम्मी ! इतनी गर्मी शुरू हो गई । अभी तक एसी नहीं चलाया ? ”
जब रोहित ने यह कहा तो उसकी माँ शीला ने अपने पति रजनीश की ओर प्रश्नवाचक नजरों से देखा । तुरंत रजनीश का जवाब आया” एसी को तो अब भूल ही जाओ। पंखे का बिजली का बिल भरना भी अब मुश्किल पड़ेगा ।”
सुनकर रोहित और शीला दोनों के चेहरे लटक गए । सचमुच स्थिति बहुत खराब है। चालीस दिन के लॉकडाउन में दुकान की आमदनी ठप हो गई । एक पैसे की कमाई नहीं । बस यह समझ लो कि जो रुपए घर में थोड़े बहुत रखे रहते हैं ,उसी से खर्चा चल रहा है । अब यह भी कितने दिन चलेंगे ? दुकान का बिजली का बिल आ चुका होगा? घर का भी बिजली का बिल आएगा । चाहे दो महीने बाद दो या चार महीने बाद , लेकिन देना तो पड़ेगा । फिर , दुकान पर खरीदारी के लिए ग्राहक भी कौन से अधिक आ जाएंगे ? जब किसी की जेब में पैसा ही नहीं होगा , सब लाचार और मजबूर होंगे , तो विलासिता की वस्तुएं खरीदने कौन आएगा ?
रजनीश के दिमाग में यही सब कुछ चल रहा था । ” शीला ! सच कहूँ तो आने वाला समय बहुत संकट का है । पता नहीं कोरोना का यह दौर कितने महीने चलेगा और कब आमदनी शुरू होगी ? कब नुकसान की भरपाई होगी ? हो सकता है अब नगदी के बाद तुम्हारे जेवर बेचकर घर का खर्च चलाने की नौबत आ जाए !”
आँसू यह कहते हुए शायद टपक ही जाते कि तभी मोबाइल की घंटी बजी। फोन उठाया तो उधर से दुकान के नौकर की आवाज थी ” बाबूजी ! अप्रैल के महीने का एडवांस अगर मिल जाता तो अच्छा रहता !”
” हमारी तो खुद हालत खराब है । फिर भी हजार -पाँच सौ की अगर जरूरत हो तो दे सकता हूँ।” कहकर रजनीश ने फोन रख दिया
” आप हजार रुपये कैसे दे देंगे ? घर में अब रुपए बचे ही कितने से हैं ? ” रजनीश ने फोन रख दिया तो पत्नी ने प्रश्न किया ।
“यह बात तो केवल मैं और तुम ही जानते हो । समाज में तो हम खाते पीते लोग कहलाते हैं । घर में एसी है। कार और स्कूटर मेंटेन कर रहे हैं । हम गरीब तो है नहीं और अमीर भी नहीं है। हम हैं मध्यमवर्ग ।”
———————————————–
_लेखक : रवि प्रकाश ,_ बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
1 Comment · 123 Views
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