हम हैं आम आदमी …
हम कहाँ के इतने भाग्य शाली ,
जो मुंह में चांदी का चम्मच लेकर ,
पैदा होते है,।
सतत संघर्षमय जीवन के बदले,
हमें हैं मिलता किंचित सुख ,
मगर हम इतने निरीह भी नहीं ,
जो सदा रहे रोते बिलखते ।
हम कामना भी क्यों करें
किसी फ़रिश्ते की ,
जो हाथ बढ़ाकर सारे दुख ,
हैं हर लेते ।
और हम दैवीय चमत्कारों की भी ,
आशा नहीं कर सकते ।
हम तो ऐसे दीवाने है
जो अशक्त होने पर भी ,
प्रयत्न रत हैं समय से क़दम मिलाने में,
उसके साथ हैं चलते फिरते ।
ना मिला पायें कदम कभी
यह और बात है ,
कोशिश तो जरूर है करते।
ज़माने की हवा तो बदल,
लेती है अपना रुख।
वोह तो किसी भी शय रुक नहीं सकती ।
हम भी उसी के साथ बदलने का
प्रयत्न है करते ।
हम कहाँ के इतने सामर्थ्य वान की ,
जीवन के सारे सुख खरीद सके ।
जितनी पूंजी है पास में ,
बस उसी में गुजारा है करते ।
इस जिंदगी की शतरंज में दाव में
लगा रहता है हमारा अस्तित्व।
हम मोहरें हैं कभी भाग्य के हाथों के ,
तो कभी राजनेताओं के हाथों के ।
वो चाहे जैसे हमारे साथ है खेलते ।
हम तो इतने भाग्य शाली भी नहीं ,
की मृत्यु बन जाये हमारी सहचरी।
और हम मुक्त हो जाये हर अड़चनों से ,
ऐसे में उम्र के फासले और लंबे है लगते ।
हमारा तो इसी तरह का जीना -मरना है ,
कभी प्राकृतिक आपदाओं से जूझना ,
कभी महामारियों से लड़ना ।
कभी महंगाई से डूबना उभरना।
या समाज में व्याप्त दुष्ट जनों से,
खुद को और अपने परिवार की बहु बेटियों /
और महिलाओं को बचाते फिरते ।
हमारी जिन्दगी कहां आसान है ,
क्योंकि हम हैं एक आम आदमी।