हम सरेबज़्म यूं गुफ़्तार नहीं कर सकते
ग़ज़ल
हम सरेबज़्म यूं गुफ़्तार नहीं कर सकते।
अपने रिश्ते को तो अख़बार नहीं कर सकते।।
ग़मगुसारी का फक़त तुझको दिया हमने हक़।
हम किसी ग़ैर को ग़मख़्वार नही कर सकते।।
सिर्फ़ सीनों को निशाना ही बनाते हैं हम।
पीठ पर यार कभी वार नहीं कर सकते।।
किसको कहते हैं अदब खूब हमें आता है।
तेरे कदमों में तो दस्तार नहीं कर सकते।।
अपने भाई को हराने के लिए हरगिज़ ही।
एक दुश्मन को तरफदार नहीं कर सकते।।
क्या फ़राइज है अनीस अपने हमें है मालूम।
तेरे ज़ल्वों का तलबगार नहीं कर सकते।।
– – अनीस शाह “अनीस”