हम समझना नहीं चाहते,
*आंकड़ों पर आधारित है जिंदगी,
हिसाब जीवन का नाम नहीं,
गर जीवन-लीला है,
जिंदगी पटरी का नाम नहीं,
गर रीति-रिवाज है,परम्परा है जीवन,
आपसी कलह को जगह नहीं,
उलझाया गया है इस पहेली को,
अन्यथा कौन कहता है !
इसका उत्तर नहीं,
इस अस्तित्व में कोई मर्ज है,
जिसकी दवा नहीं,
Mahender Singh Author at