“हम सभी यहाँ दबाव में जी रहे हैं ll
“हम सभी यहाँ दबाव में जी रहे हैं ll
ताव में तो कहीं तनाव में जी रहे हैं ll
जिसने लिए पैसे ही सब कुछ हैं,
गरूर उसके स्वभाव में ही रहे हैं ll
पुराने भरते नहीं और नये आ जाते हैं,
लोग किसी न किसी घाव में जी रहे हैं ll
उच्च अधिकारी हमें निम्न भिखारी समझते हैं,
ऐस मत खुद श्रीमान महानुभाव जी के ही रहे हैं ll
न डूब पा रहे हैं, न तैर पर रहे हैं,
कुछ स्वप्न जल भराव में जी रहे हैं ll”