“हम सब बुझु भसिया रहल छी “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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विद्यार्थी काल सं हमरालोकनि अप्पन लक्ष्यक संरचना आ परिकल्पना करैत आगाँ बढैत छी ! किनको डॉक्टर बनबाक लक्ष्य ..किनको इंजिनियर बनबाक लालसा …कियो आई० ए ० एस ०…कियो आई० पी ० एस ० इत्यादि..इत्यादि रहित छनि ! ताहि अनुसारें अप्पन अप्पन अभ्यास करैत छथि ! अर्जुन ..सर्वश्रेष्ट धनुर्धर बनलाह ! इच्छा शक्ति ..लगन ..परिश्रम ..आ उचित मार्गदर्शनक प्रतापें वो सफल धनुर्धर बनि गेलाह ! मुदा हमरा लोकनि अप्पन लक्ष्य किछु आर बनौने रहित छी आ अनेरो आनठाम मुड़ीयारि देब प्रारंभ क’ देत छी ! बुझु इ संक्रामक रोग भ’ गेल !….. हमरा लोकनिक लक्ष्य अछि ‘मिथिला ..मैथिल आ मैथिली ‘ क उत्थान ! मुदा आपसी भेद-भाव ..क्षेत्रीयता …भाषा विवाद ..इत्यादि मे ओझरा जाइत छी ! हमर एकटा कविता क किछु पंक्ति सादर समर्पित …….
“आपस केर …भेद -भाव
यावत नहि ..तोडि सकब
इतिहासक ……..टुटलता
कडियो नहि जोडि सकब !!@लक्ष्मण
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत