हम श्रमिक
आज श्रमिक दिवस है.
श्रमिक की वेदना व्यक्त करती मेरी कविता.
हम श्रमिक
हम रहे श्रमिक हम क्या जानें
अच्छे दिन कैसे होते हैं
दो जून की रोटी की खातिर,
हम सुबह शाम तक खटते है.
जिस दिन भी काम नहीं मिलता,
उस रोज नींद उड़ जाती है
कैसे अब राशन आएगा,
बस चिन्ता यही सताती है
हारी बीमारी में तो हम
पल पल तिल तिल ही मरते हैं
हम रहे श्रमिक हम क्या जानें
अच्छे दिन कैसे होते हैं
हम मजदूरों का क्या जीवन
बँधुआ है तन, बँधुआ ये मन
बिस्तर कठोर धरती का है
छत का साया है नील गगन
मेहनत तो पूरी करते हैं
फिर भी पगार कम पाते हैं
हम रहे श्रमिक हम क्या जानें
अच्छे दिन कैसे होते हैं
सरकार किसी की भी आए
हमको तो यूँ ही खटना है
सरकारों का आना जाना
मात्र जरा सी घटना है
इन सारे ही नेताओं के
वादे तो झूठे होते हैं
हम रहे श्रमिक हम क्या जानें
अच्छे दिन कैसे होते हैं
@shrikrishna.53
श्रीकृष्ण शुक्ल,
मुरादाबाद
मोबाइल 9456641400