हम वो दरख़्त नहीं…
बहती हवाएं हमें गिरा दें
हम वो दरख्त नहीं,
जाने कितने ही तूफान
हमसे होकर गुजरे हैं ।।
बार बार न इधर का
ये रुख किया करें,
हमारे रिश्ते जड़ों से
बहुत गहरे हैं।।
जिनकी आंखों में हो
समंदर से सैलाब,
सामने उनके भला कहाँ
बरसाती उफान ठहरे हैं ।।
सोच समझ कर ही
उनकी राह से निकलें,
खुदा की निगाह के
जिन पर पहरे हैं ।।
सीमा कटोच