हम लोग
होश अपना कन्हा गंवा बैठे हैं लोग।
क्यों बेखुदी मे जिए जा रहे हैं लोग।।
जरा सी बात को दिल से लगाए बैठे हैं।
रिश्तों का भी ख्याल करते नहीं है लोग।।
ये जिंदगी इतना भी सितम ना कर मुझपे।
वरना किसे सितमगर कहेंगे लोग।।
इत्तिफाकन है या कोई दौर नया लगता है।
रोज शातिर सी शाजिसे करने लगे हैं लोग।।
फकत जिंदगी की उलझनें तमाम हैं आशिक।
चार दिन की जिंदगी जहन्नुम बना रहे है लोग।।
आईन की बेकद्री भी अब आम हो गई।
क्यों मनमर्जियो मे जिए जा है लोग।
ये वक्त भी गुजर जाएगा सब्र तो रख जरा।
इंशा होने का फर्ज फिर अदा करेंगे लोग।।
उमेश मेहरा
गाडरवारा (m,p,)
9479611151