हम लिखें वो ही समझो जरूरी नहीं
हम लिखें कोई पढ़े ये तो जरूरी नहीं…
पढ़ भी ले और उसे समझे जरूरी नहीं…
समझ अपनी – अपनी है अपना दिमाग,
जो लिखें वही समझे जरूरी नहीं…
दुनिया बनाई ही ऐसी है रब ने मेरे,
दोस्त भी गर बनाओ तो बनेंगे नहीं…
गर चाहो फैलाना जहां में महक,
सुगन्धित सुमन भी खिलेंगे नहीं…
रिश्ता चाहो बनाना रूहानी व पाक,
पाक मन को भी मेला समझते है लोग…
चाहे खुल के कभी ना हंसे हों वहां,
गर हंसाना भी चाहो भाव खाते है लोग…
भारत भी बुरी आदतों से मजबूर हैं,
बात बुतों से करने की जरूरत है क्या…
जिसे भावनाओ की ना हो फिकर,
उन्हें आस्थाओं की मूरत से क्या…
भारतेंद्र शर्मा